24 August, 2015

चाणक्य नीति दूसरा अध्याय

Chanakya

असत्य, बिना सोचे समझे किसी कार्य में लग जाना, लोभ, अपवित्रता और निर्दयता यें सभी दुर्जन स्त्रियों के स्वाभाविक गुण हैं ।

भोजन के योग्य प्रदार्थ मिलना, भोजन करने की शक्ति, सुन्दर स्त्री, ऐश्वर्य और दान देने की शक्ति, यें सभी किसी सामान्य तप का परिणाम नहीं हो सकती ।

जिसका पुत्र आज्ञा का पालन करने वाला, स्त्री इच्छा के अनुसार चलने वाली तथा स्वयं संतोषी हो, उसकों यहीं पर स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती हैं।

पुत्र वही हैं जो पिता की आज्ञा का पालन करें, पिता वही हैं जो पालन पोषण करें, मित्र वही हैं जिस पर विश्वास किया जा सके और पत्नीं वही हैं जिससे सुख प्राप्त हों ।

जो सामने मीठी मीठी बातें करें तथा पीठ पीछे बुराई करें, ऐसे मित्र उस घड़े के समान हैं जिसके मुहं पर दूध और अन्दर विष से भरा हों।

कुमित्र पर कभी भी विश्वास नहीं करना चाहियें और सुमित्र पर भी विश्वास ना रखें। कभी अगर मित्र रुष्ट हो जायें तो गुप्त भेद किसी और को बता सकता हैं।

मन से सोचें हुये काम का बखान न करें बल्कि गुप्त में उसपर कार्य करतें रहें।

मुर्खता और यौवन दुःख देते हैं परन्तु दुसरें के घर में निवास करना सबसे दुखदायक हैं।

हर पर्वत पर माणिक्य नहीं होता, हर हाथी में भी मोती नहीं मिलता, सज्जन व्यक्ति सभी जगह नहीं मिलते और सभी वनों में चंदन नहीं मिलता ।

बुद्धिमान लोग अपने लड़कों को विभिन्न प्रकार के कौशल कार्य में लगायें क्योंकि नीति को जानने वाले अगर शीलवान होंगें तो सर्वत्र पूजे जायेंगें ।

लाड-प्यार से बच्चों में दोष उत्पन्न होतें हैं और दण्ड देंने से गुण । इस कारण बच्चों को जरुरत पड़ने पर लाड-प्यार की अपेक्षा दण्ड देना चाहियें ।

प्रतिदिन श्लोक पढ़ना उचित हैं, क्योंकि दान, अध्ययन आदि कार्यो से दिन को सार्थक करना चाहियें ।

वह माता पिता शत्रु हैं जिन्होंने अपने बालक को नहीं पढ़ाया। ऐसे बालक सभा में ऐसे लगते हैं जैसे हंसों के बीच बगुला बैठा हों।

विद्वान् का बल विद्या, शासक का बल सेना, व्यापारी का बल धन और सेवक का बल सेवा हैं।

स्त्री का विरह, अपनों से मिला अनादर, गरीबी और मूर्खो की सभा यें सब बिना आग ही शरीर को जलाते हैं ।

वैश्य निर्धन पुरुष को, प्रजा शक्तिहीन राजा को, पक्षी फल रहित वृक्ष को और अतिथि भोजन करके घर को छोड़ देते हैं ।

नदी के किनारें के वृक्ष, दुसरे के घर में रहने वाली स्त्री, मंत्री रहित राजा यें सभी शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं ।

ब्राह्मण दक्षिणा लेकर यजमान को, शिष्य विद्या प्राप्त करके गुरु को और मृग जले हुयें वन को त्याग देते हैं।

जिसका आचरण बुरा हैं, जिसकी दृष्टि बुरी हैं, जो बुरे स्थान पर रहता हैं और जिसकी मित्रता बुरें लोगों के साथ हैं वह मनुष्य शीघ्र ही नष्ट हो जाता हैं।

प्रीति समान व्यक्तियों में शोभा देती हैं, राजा की सेवा अधिक शोभा देती हैं, व्यापारी का व्यवहार और सुन्दर स्त्री घर में शोभा देती हैं ।

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