16 August, 2014

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी - हिंदी निबंध

<img src="shri-krishna.jpg" alt="shri krishna janmashtami jayanti" height="136" width="200">
जब जब धरती पर अन्याय और अत्याचार बढ़ा हैं तब तब भगवान ने स्वयं इस धरती पर आकर अन्याय और अत्याचार से सभी को मुक्त किया हैं श्रीकृष्ण का जन्म भी इसी उद्देश से हुआ था जिन्होंने अपने जीवन काल में जीवन के हर एक किरदार को जिया और लोगों को उसी तरह जीने की प्रेरणा भी दी। चाहे वो गोकुल में गोपियों संग रासलीला हो, या महाभारत में पांडवों व कौरवों संग युद्ध का मैदान। इसी कारण श्रीकृष्ण के जन्मदिवस को जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता हैं। जो रक्षाबंधन के बाद भाद्रपद (अगस्त-सितम्बर) माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है। जन्माष्टमी को कृष्णाष्टमी, सातम-आठम, गोकुलाष्टमी, अष्टमी रोहिणी, श्रीकृष्ण जयंती एवं श्री जयंती आदि नामों से भी जाना जाता हैं।

श्रीकृष्ण जन्मकथा
श्रीकृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र थे। देवकी के पिता राजा अग्रसेन मथुरा के राजा थे। देवकी का भाई कंस अपने पिता अग्रसेन को कारागार की काल कोठारी में बंद कर स्वयं मथुरा के सिहांसन पर बैठ गया। देवकी के आठवें पुत्र के हाथों अपनी मौत की भविष्यवाणी सुन कर कंस ने देवकी और वासुदेव को भी कारागार में बंद कर दिया। कंस ने देवकी की पहले छह बच्चों को मार डाला और सातवें बच्चे की भी गर्भपात से मृत्यु हो गयी। जेल की काल कोठारी में श्रीकृष्ण ने देवकी के आठवें पुत्र के रूप में जन्म लिया। भगवान विष्णु ने वासुदेव को आदेश दिया कि वह श्रीकृष्ण को गोकुल में यशोदा और नन्द के पास पहुंचा आये जहाँ वह अपने मामा कंस से सुरक्षित रह सके। भगवन विष्णु की कृपा से वासुदेव श्रीकृष्ण को यशोदा के पास सुलाकर, यशोदा की पुत्री जिसने उसी वक्त जन्म लिया था, को अपने साथ ले आये। कंस ने उस कन्या को देवकी की आठवीं संतान समझकर मार डालना चाहा पर वह सफल नहीं हो सका। श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा और नन्द की देखरेख में हुआ। जब श्रीकृष्ण बड़े हुए तो उन्होंने अपने मामा कंस का वध कर अपने माता-पिता को उनके चंगुल से मुक्त कराया।

दही-हांड़ी प्रतियोगिता
जन्माष्टमी के पावन अवसर पर देश में अनेक जगह दही-हांड़ी प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता हैं। परन्तु दही-हांड़ी महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। दही-हांड़ी प्रतियोगिता में देश-विदेश के बाल-गोविंदा भाग लेते हैं। छाछ, दही आदि से भरी एक मटकी रस्सी की सहायता से आसमान में लटका दी जाती है और बाल-गोविन्दाओं द्वारा मटकी फोड़ने का प्रयास किया जाता है। बार-बार प्रयास करने पर बाल-गोविंदा मटकी फोड़ने में सफल भी हो जाते हैं। बाल गोविन्दाओं पर पानी की बोछार की जाती है। प्रतियोगिता में विजेता टीम को उचित ईनाम भी दिए जाते हैं।

जन्माष्टमी के दिन उपवास 
जन्माष्टमी पर पुरे दिन व्रत का विधान है। प्रात: काल स्नान करना चाहिए। आम तथा अशोक वृक्ष के पतों से घर को सजाना चाहिए। श्रीकृष्ण तथा शालिग्राम की मूर्ति को पंचामृत से अभिषेक कर पूजन करना चाहिये। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मन्त्र का जाप करना चाहिये। दिन में पूजन, कीर्तन के पश्चात् रात्रि में ठीक बारह बजे भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाना चाहिये। रात्रि को भगवान् श्रीकृष्ण का जागरण करना चाहिए। अपनी शक्ति के अनुसार फलाहार अथवा पूर्ण निराहार रहकर व्रत करना चाहिये।

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