बाबासाहेब भीमराव
आंबेडकर का जन्म भारत के एक गरीब अस्पृश्य परिवार में 14 अप्रैल, 1891
को मध्यप्रदेश राज्य के
एक छोटे से गाँव महू में हुआ। इनके पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल और माता का नाम
भीमबाई था। भीमराव आंबेडकर हिन्दू धर्म की महार जाति से संबंध रखते थे। हिन्दू
धर्म में मानव समाज को चार वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र में बांटा
गया हैं। अन्य वर्णों के लोगों द्वारा शुद्र वर्ण के लोगों का
आर्थिक, सामाजिक तथा मानसिक शोषण किया जाता था। बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर को भी इन
सब से गुजरना पड़ा। डा. भीमराव आंबेडकर ने बचपन में ही इस सब समस्याओं से लड़ने का मन बना लिया था। बाबासाहेब
कड़ी मेहनत के बाबा पहले अछूतों में से एक बने जिन्होंने कॉलेज की डिग्री प्राप्त
की। उच्च अध्ययन के लिए बड़ोदा के महाराज समाजो राव गायकवाड़ ने इनको छात्रवृति प्रदान की। डा. भीमराव आंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय और लंदन
स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से कई डॉक्टरेट की डिग्रीयां अर्थशास्त्र, राजनीति विज्ञान और
विधि विषय में प्राप्त की।
बाबासाहेब भीमराव
आंबेडकर के जीवन का मुख्य उद्देश्य अछूतों का उद्धार करना था। अछूतोद्धार आन्दोलन की
शुरुआत 20 जुलाई, 1927 को “बहिष्कृत हितकारिणी
सभा” की स्थापना से की जिसका उद्देश्य दलितों में शिक्षा का प्रसार करना,
छात्रावासों की स्थापना करना, दलितों की आर्थिक स्थिति सुधारना आदि था।
बाबासाहेब आंबेडकर ने
भारतीय संविधान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाबासाहेब के प्रयासों से ही
भारतीय संविधान में दलितों को समान अधिकार, छुआछुत तथा समानता को स्थान दिया गया।
बाबासाहेब आंबेडकर ने
हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरूतियों तथा अंधविश्वासों पर कठोर प्रहार किया। मनुस्मृति
पर कठोर प्रहार किया क्योंकि इसी में लिखा गया है कि यदि अछूत वेद मन्त्र सुने तो
उनके कानों में रांग पिघला कर डाल देनी चाहिए । बाबासाहेब ने बोद्ध धर्म का गहन
अध्ययन किया और सन् 1955-56 में हजारों दलितों के साथ बाबासाहेब नें बोद्ध
धर्म को स्वीकार कर लिया ।
राजनीतिक मुद्दों से
परेशान बाबासाहेब आंबेडकर का स्वास्थ्य दिन प्रतिदिन ख़राब होता चला गया । 6 दिसम्बर, 1956
को बाबासाहेब आंबेडकर की
मृत्यु दिल्ली में स्थित उनके निवास स्थान पर हुई । 7 दिसम्बर को बोद्ध रीती
रिवाज के अनुसार उनका अंतिम संस्कार चौपाटी समुद्र तट पर किया गया । बाबासाहेब डा.
भीमराव आंबेडकर सभी के लियें प्रेरणा के स्रोत बनें रहेंगें ।
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