तीनों लोकों के पालनहार
सर्वशक्तिमान भगवान विष्णु को ह्रदय से प्रणाम करके अनेक ग्रंथों का सार राजनीति
सूत्र में पिरोकर इस ग्रंथ को कहता हूँ।
जो इसको विधिपूर्वक
पढ़कर, शास्त्रों में वर्णित शुभ और अशुभ में भेद करके कार्य करेगा उसकी गिनती उतम
मनुष्यों में होगी।
मैं लोगों के हित के
लियें उन बातों को कहूँगा जिसके ज्ञान से मनुष्य सर्वज्ञता को प्राप्त करेगा ।
मुर्ख शिष्य को अध्ययन
कराने, दुष्ट स्त्री का पालन करने तथा दुखियों के साथ व्यव्हार करने से विद्वान्
भी दुःख पाता हैं।
दुष्ट स्त्री, मुर्ख
मित्र, उत्तर देनें वाला नौकर और ऐसा घर जहाँ साँप रहते हों, यें सभी मृत्यु के
समान हैं।
आपति से बचने के लियें
धन का संचय करना चाहियें। धन से स्त्री की रक्षा करनी चाहियें। स्त्री और धन से
अपनी रक्षा करनी चाहियें।
भविष्य में विपति निवारण
के लियें धन को एकत्रित करना चाहियें क्योंकि धनी व्यक्ति को भी मुसीबत आ सकती हैं
। लक्ष्मी चंचल होती हैं जो शीघ्र ही आपका साथ छोड़ सकती हैं ।
ऐसे देश में निवास नहीं
करना चाहियें जहाँ आदर ना हों, जीविका का साधन ना हों, कोई बंधू न हो तथा जहाँ
विद्या का कोई लाभ न हों।
धनवान, वेदों का ज्ञाता,
राजा, नदी और चिकित्सक यें पांच व्यक्ति जहाँ ना हों वहाँ निवास नहीं करना चाहियें।
जीविका के साधन, किसी
चीज का भय, कुशलता और देनें की प्रवृति जहाँ ना हों वहाँ के लोगों के साथ संगति
नहीं करनी चाहियें।
नौकर की परीक्षा जब वह
काम ना कर रहा हों , दुःख आने पर भाई की परीक्षा, विपति आने पर मित्र की और धन के
नष्ट होनें पर स्त्री की परीक्षा की जाती हैं।
दुःख प्राप्त होनें पर,
अकाल पड़ने पर, शत्रुओं से संकट आने पर, शासक द्वारा बुलायें जाने पर और स्मशान में
जों साथ रहता हैं वहीँ मित्र अथवा भाई हैं।
जो निश्चित वस्तुओं को
छोड़कर अनिश्चित वस्तुओं की सेवा करना हैं उसकी निश्चित तथा अनिश्चित दोनों प्रकार
की वस्तुयें नष्ट हो जाती हैं।
बुद्धिमान किन्तु कुरूप
स्त्री तथा मुर्ख किन्तु सुन्दर स्त्री में से बुद्धिमान कुरूप स्त्री से विवाह
तथा मित्रता करना ज्यादा श्रेठ हैं।
नदियों का, शस्त्र धारण
करने वालों का, बड़े नाखुनवालें तथा सिंग वालें जानवरों का कभी भी विश्वास नहीं
करना चाहियें।
अमृत अगर विष में भी हो
तो उसे निकाले, सोना अगर अशुद्ध प्रदार्थ में भी हो तो उसे वहां से निकालें,
विद्या अगर किसी भी प्रकार से उत्तम हैं तो उसे प्राप्त करें, उसी प्रकार योग्य व
गुणवान स्त्री किसी भी कुल की क्यों न हों उसे स्वीकार कर लेना चाहियें ।
पुरुषों से स्त्रियों की
भूख दो गुना, लज्जा चार गुना, साहस छह
गुना और कार्य करने की शक्ति आठ गुना अधिक होती हैं ।
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