20 July, 2014

तटस्थ बने रहना भी पाप

<img src="bhishm.jpg" alt="Bhishm Pitamah in Mahabharat" height="137" width="200">
Bhishm
महाभारत में श्रीकृष्ण के बाद अगर कोई सबसे शक्तिशाली व्यक्ति के रूप में जाने जाते थे तो वो थे भीष्म पितामाह जिन्होंने आजीवन ब्रहचर्य का पालन किया और आजीवन अविवाहित रहे. उन्हें इच्छामृत्यु का भी वरदान प्राप्त था. महाभारत में एक प्रसंग आता हैं भीष्म पितामाह युद्ध में बुरी तरह घायल हो जाते हैं पर अपने इच्छामृत्यु के वरदान के कारण वो युद्ध की समाप्ति तक अपने आप को जीवित रखने का निर्णय करते हैं. भीष्म पितामाह तीरों की शैया पर लैटे रहते थे. 

एक रोज श्रीकृष्ण, पांडवों और कोरवों सहित सभी उनके पास खड़े थे. तभी भीष्म पितामाह ने भगवान श्रीकृष्ण से एक सवाल किया. भीष्म पितामाह ने कहा- "हे कृष्ण !  मैंने अपने जीवन में ऐसा कोई कार्य नहीं किया जिससे किसी का अहित हो. मैंने कभी भी किसी बेसहारा  को नहीं  सताया. फिर भी आज मेरी ये दुर्दशा क्यों." श्रीकृष्ण ने कहा - "हे भीष्म ! जब द्रोपदी का भरी सभा में चिर हरण हो रहा था. तब आप ख़ामोशी से सब कुछ देख रहे थे. अगर आप चाहते तो उस घटना को रोक सकते थे. अगर आप ऐसा करते तो शायद यह महाभारत का युद्ध भी नहीं हुआ होता. पर आपने ऐसा कुछ नहीं किया. आज उसी कारण आपकी यह दुर्दशा हो रही हैं."

मित्रों जीवन में हमारे सामने भी ऐसे कई मोके आते हैं जब हमारे सामने कुछ बुरा हो रहा होता हैं तब हम भीड़ का हिस्सा बने रहकर सब कुछ ख़ामोशी के साथ देखते रहते हैं. मित्रों संसार में अच्छे लोगों की कमी नहीं है, इसके विपरीत चंद मुठी भर बुरे लोगों ने संसार में गंदगी फेला रखी हैं. मित्रों बुरा काम करने वालों से कही ज्यादा अपराधी वे लोग हैं जो यह सब होता हुआ देख अपनी नज़रे झुका लेते हैं. जो आज किसी और के साथ हो रहा हैं वो कल हमारे साथ भी हो सकता हैं. मित्रों अपने आप से यह प्रण करें कि जब कभी भी हमारे सामने ऐसी कोई घटना घटित होगी तो उसका पुरे जोश और होश के साथ सामना करेंगे.

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