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| Chanakya |
किस परिवार में दोष नहीं हैं, कौन हैं जो
बीमार न हुआ हों, किसे दुःख नहीं मिला, कौन हैं जो सदा सुखी ही रहा।
मनुष्य का आचरण उसके कुल का प्रदर्शन करता
हैं, मनुष्य की बोली उसके देश का परिचय कराती हैं, मनुष्य के द्वारा किसी का आदर
करना उसके प्रेम को दर्शाता हैं और मनुष्य का शरीर उसके भोजन करने की क्षमता को
प्रदर्शित करता हैं ।
कन्या का विवाह श्रेष्ठ कुल में करना
चाहियें, पुत्र को अच्छी शिक्षा में लगाना चाहियें, शत्रु को दुख व कष्ट पहुँचाना
उचित हैं और मित्र को समय पर धर्म का उपदेश देना चाहियें ।
दुर्जन और सांप में तुलना करे तो सांप अधिक
श्रेष्ठ हैं क्योंकि सांप मृत्यु का समय आने पर आपको डंसता हैं जबकि दुर्जन पग-पग
पर, हर समय हानि पहुंचाता हैं ।
राजा श्रेष्ट व्यक्तियों को अपने पास रखते
हैं क्योंकि यें व्यक्ति उन्नति के समय, साधारण स्थिति में तथा विपत्ति के समय
राजा का साथ कभी नहीं छोड़ते हैं ।
प्रलय आने पर समुद्र अपनी मर्यादा को छोड़कर
सब कुछ नष्ट करने तथा सागर को भेदनें की इच्छा रखता हैं परन्तु साधु व्यक्ति प्रलय
या विपत्ति के समय अपनी मर्यादा को नहीं छोड़ते हैं ।
मुर्ख व्यक्ति को हमेशा अपने से दूर रखना
चाहियें क्योंकि वह मनुष्य के रूप में दो पैरों वाले पशु के समान हैं जिसके शब्द रूपी
बाण आपको उसी प्रकार चोट पहुंचा सकते हैं जिस प्रकार एक अंधे व्यक्ति को कांटा चुभने
पर जो तकलीफ उसे होती हैं ।
सुन्दरता, यौवन और अच्छे परिवार में जन्म
लेनें के बाद भी व्यक्ति अगर विद्याहीन हैं तो वह पलाश के फूलों के समान हैं जो
सुन्दर तो होते हैं पर खुशबू नहीं देते ।
कोयल की सुन्दरता उसके स्वर में हैं, पत्नी
की सुन्दरता उसके पतिव्रत में हैं, कुरूप की सुन्दरता उसके ज्ञान में हैं और एक
तपस्वी की सुन्दरता उसकी क्षमा करने की प्रवृति में हैं ।
कुल की रक्षा के लिए कुल के एक सदस्य का
त्याग करना पड़े तो उसे त्याग देना चाहियें, इसी प्रकार गाँव के लिए कुल का, देश के
लिए गाँव का और अपने लिए सभी का त्याग कर देना चाहियें ।
गरीबी से निकलने का उपाय करने वाला कभी गरीब
नही रह सकता, भगवान को जपने वाले पर कभी पाप का बोझ नहीं रह सकता, मौन रहने पर कलह
नहीं हो सकता और जागृत अर्थात् ज्ञानी मनुष्य के निकट भय नहीं आ सकता।
अति सुन्दरता के कारण सीता का हरण हुआ, अति
अहंकार के कारण रावण मारा गया, अति दान के कारण राजा बलि को बंधना पड़ा। इस कारण
अति को सब जगह छोड़ देना चाहियें।
जो कार्य करने में समर्थ हैं उसके लिए कोई भी
कार्य कठिन नहीं हैं, जो कार्य करने के लिए तत्पर रहता हैं उसके लिए कुछ भी दूर
नहीं हैं, जो विद्या प्राप्त करना चाहते हैं उसके लिए कोई भी देश विदेश नहीं हैं
और जो मुख से मधुर वाणी बोलते हैं उनके लिए कोई भी अप्रिय नहीं हैं ।
जिस प्रकार वन में एक अच्छे वृक्ष के सुन्दर
व सुगन्धित पुष्प से सारा वन महक उठता हैं, ठीक इसी प्रकार एक सुपुत्र से सारे कुल
का यश बढ़ जाता हैं।
आग से जलता हुआ सुखा वृक्ष सारे वन को जला
देता हैं। इसी प्रकार एक कुपुत्र सारे कुल का यश मिट्टी में मिला देता हैं ।
एक ही सुपुत्र पुरे परिवार को आनंदित कर देता
हैं, जो विद्या से युक्त और संस्कारी हो । जिस प्रकार चन्द्रमा अपने प्रकाश से
रात्री को प्रकाशमान करता हैं।
परिवार के दुख का कारण बनने वाले सौ पुत्रों
की अपेक्षा एक सुपुत्र ज्यादा श्रेष्ट हैं जो कुल को सहारा दे ।
पांच साल तक पुत्र को लाड-प्यार करें । उसके
बाद दस साल तक पुत्र को डांटकर रखे और सोलहवें वर्ष पुत्र के साथ मित्र के समान
आचरण करें ।
भौतिक आपदा आने पर, शत्रु के आक्रमण करने पर,
अकाल पड़ने पर और दुष्ट व्यक्ति के साथ होने पर जो भागता हैं वही जीवित रहता हैं ।
जिसने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में से कुछ
भी अर्जित नहीं किया उसे मनुष्य रूपी जीवन का कोई लाभ नहीं।
जहाँ मूर्खों की पूजा नहीं होती, जहाँ अन्न
को संचित रखा जाता हैं, जहाँ स्त्री पुरुष में झगड़ा नहीं होता, वहां सदैव लक्ष्मी
विराजमान रहती हैं ।
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