धन का नष्ट हो जाना, मन का क्रोध, पत्नी का चरित्र, दुष्ट व्यक्ति
द्वारा कहे कड़वे वचन और अपने अपमान आदि का वर्णन बुद्धिमान व्यक्ति को किसी के
सामने नहीं करना चाहियें।
जो व्यक्ति धन संबंधी कार्यों में, विद्या प्राप्त करने में, भोजन
करने में और अच्छा आचरण करने में संकोच नहीं करता हैं वह सदा सुखी रहता हैं।
संतोषरूपी अमृत से जो शांति मिलती हैं, वह धन के लालच में इधर-उधर दोड़
भाग करने पर नहीं मिलती हैं।
अपनी पत्नी, भोजन और धन इन तीनों में संतोष रखना चाहियें जबकि अध्ययन,
दान और ईश्वर के स्मरण में कभी भी संतोष नहीं करना चाहियें।
दो विद्वान्, विद्वान् और आग, स्त्री और पुरुष, राजा और नोकर तथा हल
और बैल इन सभी के मध्य से कभी नहीं गुजरना चाहियें।
अग्नि, गुरु, विद्वान्, गाय, कुँवारी कन्या, वृद्ध और बालक इन सभी को
पैर से कभी नहीं छूना चाहियें।
गाडी से पांच गज की दुरी, घोड़े से दस गज की दुरी, हाथी से हजार गज की
दुरी बनाकर रखनी चाहियें और दुर्जन व्यक्ति से मीलों दूर रहना चाहियें।
हाथी को अंकुश से, घोड़े को हाथ से, सिंग वाले जानवर को लाठी से और
दुष्ट व्यक्ति को तलवार से नियंत्रित करे।
भोजन के समय विद्वान् प्रसन्न होता हैं, बादल के गरजने से मोर, दूसरों
को सम्पति प्राप्त होने पर सज्जन और दूसरों को विपति में देखकर दुर्जन व्यक्ति
प्रसन्न होता हैं।
शक्तिशाली शत्रु के अनुकूल व्यवहार करके उसको वश में करे, शक्तिहीन
शत्रु को अपने अनुकूल व्यवहार करवायें, समान शक्ति के शत्रु को विनम्रता पूर्वक और
बल से वश में करे।
राजा का बल उसकी भुजाओं में, विद्वान् का बल उसका ज्ञान और स्त्री का
बल उसकी सुन्दरता, यौवन और मधुर वाणी हैं।
व्यक्ति को व्यवहार में अत्यन्त सीधा भी नहीं होना चाहियें, क्योकिं
वन में अत्यन्त सीधे वृक्ष पहले काटे जाते हैं और टेढ़े वृक्ष को कोई नहीं काटता।
हंस वहीँ रहता हैं जहाँ जल होता हैं, जहाँ जल नहीं होता हंस उस स्थान
को छोड़कर चले जाते हैं। किसी को अपने साथ ऐसा व्यवहार ना करने दे, ऐसे व्यक्ति तभी
आते हैं जब आपके पास सम्पति होती हैं।
अर्जित धन को खर्च करने से नए धन को आने का मोका मिलता हैं जिस तरह
तालाब से जल निकालने पर उसके स्थान पर नया जल आ जाता हैं।
जिसके पास धन रहता हैं उसी व्यक्ति के मित्र होते हैं, उसके भाई भी
उसके साथ रहते हैं, उसी की ही मनुष्यों में गिनती होती हैं और वही इस संसार में
जीवन यापन कर सकता हैं।
सज्जन व्यक्तियों में जन्म से ये चार गुण पायें जाते हैं – दान का
स्वभाव, मीठा वचन, ईश्वर का स्मरण और विद्वान् व्यक्ति का सम्मान करना।
दुर्जन व्यक्तियों में जन्म से ही ये गुण पायें जाते हैं – अत्यन्त
क्रोध, कठोर वचन, अपने लोगों से शत्रुता, बुरी संगत और दरिद्र बने रहने की
हीनभावना।
यदि कोई शेर की गुफा में जाने का साहस करता हैं तो उसे हाथी के सिर
में मिलने वाला मोती मिल सकता हैं परन्तु यदि कोई लोमड़ी की गुफा में जाता है तो
उसे केवल जानवरों के अवशेष ही मिलते हैं।
एक विद्याहीन मनुष्य कुते ही पूंछ की तरह होता हैं, जिस प्रकार कुते
की पूंछ ना को कुते के गुप्त अंगों को ढक सकती हैं और ना ही उसके मुंह पर बैठने
वाली मक्खियों को भगा सकती हैं।
मन की शुद्धि, वाणी की शुद्धि, इन्द्रियों पर संयम, दया और पवित्रता
ये सभी मनुष्य को जीवन में अपनाना चाहिए।
जिस प्रकार फूल में सुगंध, तिल में तेल, दूध में घी, लकड़ी में आग, गन्ने
में गुड़ होता हैं ठीक उसी प्रकार प्रत्येक शरीर में परमात्मा निवास करता हैं।
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